देश भर में खुदरा सुपरमार्केट और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर दक्षिण अफ्रीका के सेब की बढ़ती उपस्थिति ने कश्मीरी सेब की मांग और कम कर दी है, जिससे कीमतें घटती जा रही हैं।
देश में भारी मात्रा में विदेशी सेब की आवक से कश्मीरी सेब को बाजार नहीं मिल पा रहा है। घाटी में 30 फीसदी फल अब भी कोल्ड स्टोरेज इकाइयों में पड़ा है। लगातार घटती मांग और दाम से घाटी के सेब उत्पादक व व्यापारी प्रभावित हैं। आमतौर पर कोल्ड स्टोरेज इकाइयां अप्रैल के अंत तक खाली कर ली जाती हैं, लेकिन इस साल बाजार की सुस्त मांग के कारण सेब का एक बड़ा हिस्सा गोदामों में है।
स्थानीय उत्पादकों और व्यापारियों का कहना है कि मौजूदा बाजार मांग को देखते हुए लगता है कि कोल्ड स्टोर में जुलाई के मध्य तक पिछले साल का भंडारण खत्म नहीं होगा। देश भर में खुदरा सुपरमार्केट और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर दक्षिण अफ्रीका के सेब की बढ़ती उपस्थिति ने कश्मीरी सेब की मांग और कम कर दी है, जिससे कीमतें घटती जा रही हैं।
इससे स्थानीय उत्पादकों व व्यापारियों को काफी नुकसान हुआ है। घाटी के सेब उत्पादक समीर अहमद ने कहा कि पिछले वर्षों में वसंत के दौरान बाजार में प्रति पेटी सेब 1500-2000 रुपये बिकता था। इस साल मांग कम होने से रोज कीमत गिरने से नुकसान हो रहा है। उत्पादकों ने कहा, सरकार के सेब के आयात पर प्रतिबंध लगाने के वादे के बावजूद जमीनी हकीकत उलट है।
कोल्ड स्टोरेज में आगामी फसल के लिए जगह नहीं
विशेषज्ञों के अनुसार, बाजार में कश्मीरी सेब की मांग घटने का मुख्य कारण अफ्रीका, ईरान सहित अन्य देशों से सेब का आयात है। स्थानीय सेब उत्पादकों को समर्थन देने के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप की जरूरत है। कोल्ड स्टोर मालिकों ने कहा कि स्टोर भरे होने के कारण उन्हें भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आड़ू, चेरी और अन्य फलों की आगामी फसल रखने के लिए जगह नहीं है। अभी भी 30 फीसदी माल अंदर है, जो लगभग तीन लाख मीट्रिक टन है।
3.5 लाख हेक्टेयर रकबा घाटी में सेब के अधीन
कश्मीर में सालाना 20 से 25 लाख मीट्रिक टन से अधिक सेब उत्पादन होता है। जम्मू-कश्मीर में 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, कश्मीर की आधी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सेब उद्योग पर निर्भर है। घाटी में 3.5 लाख हेक्टेयर रकबा सेब के अधीन है।